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रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

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रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

हम अँधेरे में किधर जाएँगे

अपने शाने पे न ज़ुल्फ़ें छोड़ो

दिल के शीराज़े बिखर जाएँगे

यार आया न अगर वादे पर

हम तो बे-मौत के मर जाएँगे

अपने हाथों से पिला दे साक़ी

रिंद इक घूँट में तर जाएँगे

क़ाफ़िले वक़्त के रफ़्ता रफ़्ता

किसी मंज़िल पे ठहर जाएँगे

मुस्कुराने की ज़रूरत क्या है

मरने वाले यूँही मर जाएँगे

हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'

ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे

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Sootradhar