
जब उठकर सब चले गए तो, मन की बात किसे बतलाएँ !
कल तक जो थे साथ हमारे
आज बने हैं सब अनजाने
मन से बढ़ती मन की दूरी
डाल रही नफरत के दाने ।
टूट रहे सब नाते-रिश्ते, मन की बात किसे बतलाएँ !
अपनों के दिन भी क्या दिन थे
सबके सब अपने लगते थे,
सुख-दुःख में भी मिल-बैठकर
साथ-साथ सपने गढ़ते थे ।
अलग-अलग सपनों को लेकर
अब कैसे एक साज सजाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
बहुत कठिन है राह बनाना
अपनों से सिंगार सजाना,
संबंधों के विखरेपन को
प्यार-प्रीति की छाँव दिखाना ।
भावहीन गीतों से कैसे
हम अपने मन को बहलाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
पर्वत की ऊँचाई जैसी
मेरी मंशा ठहर गई है,
अपने बने पराए की अब
भ्रातृ-भावना बिखर गई है ।
मन में बैठी उन यादों को
अब कैसे जीवित दफनाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
कल तक जो थे साथ हमारे
आज बने हैं सब अनजाने
मन से बढ़ती मन की दूरी
डाल रही नफरत के दाने ।
टूट रहे सब नाते-रिश्ते, मन की बात किसे बतलाएँ !
अपनों के दिन भी क्या दिन थे
सबके सब अपने लगते थे,
सुख-दुःख में भी मिल-बैठकर
साथ-साथ सपने गढ़ते थे ।
अलग-अलग सपनों को लेकर
अब कैसे एक साज सजाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
बहुत कठिन है राह बनाना
अपनों से सिंगार सजाना,
संबंधों के विखरेपन को
प्यार-प्रीति की छाँव दिखाना ।
भावहीन गीतों से कैसे
हम अपने मन को बहलाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
पर्वत की ऊँचाई जैसी
मेरी मंशा ठहर गई है,
अपने बने पराए की अब
भ्रातृ-भावना बिखर गई है ।
मन में बैठी उन यादों को
अब कैसे जीवित दफनाएँ, मन की बात किसे बतलाएँ !!
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