एक नए साँचे में ढल जाता हूँ मैं's image
0305

एक नए साँचे में ढल जाता हूँ मैं

ShareBookmarks
 

एक नए साँचे में ढल जाता हूँ मैं

क़तरा क़तरा रोज़ पिघल जाता हूँ मैं

जब से वो इक सूरज मुझ में डूबा है

ख़ुद को भी छू लूँ तो जल जाता हूँ मैं

आईना भी हैरानी में डूबा है

इतना कैसे रोज़ बदल जाता हूँ मैं

मीठी मीठी बातों में मालूम नहीं

जाने कितना ज़हर उगल जाता हूँ मैं

अब ठोकर खाने का मुझ को ख़ौफ़ नहीं

गिरता हूँ तो और सँभल जाता हूँ मैं

अक्सर अब अपना पीछा करते करते

ख़ुद से कितनी दूर निकल जाता हूँ मैं

 
Read More! Learn More!

Sootradhar