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रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह

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रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह

पाँव में चक्कर था मेरे आसमानों की तरह

दिल में हैं लेकिन उन्हें दिल से ग़रज़-मतलब नहीं

अपने घर में रहते हैं वो मेहमानों की तरह

दिल के देने का कहीं चर्चा न करना देखना

ले के दिल समझा रहे हैं मेहरबानों की तरह

नाम पर मरने के मरते हैं मगर मरते नहीं

कौन जी सकता है हम से सख़्त-जानों की तरह

दिल जो कुछ कहता है करते हैं वही 'बेख़ुद' मगर

सुन लिया करते हैं सब की बे-ज़बानों की तरह

 

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Sootradhar