न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं
शब-ए-व'अदा वो दिल में दर्द-ए-फ़ुर्क़त बन के आते हैं
परेशाँ ज़ुल्फ़ मुँह उतरा हुआ महजूब सी आँखें
वो बज़्म-ए-ग़ैर से आशिक़ की सूरत बन के आते हैं
बने हैं शैख़-साहिब नक़्ल-ए-मज्लिस बज़्म-ए-रिंदाँ में
जहाँ तशरीफ़ ले जाते हैं हज़रत बन के आते हैं
न रखना हम से कुछ मतलब ये पहली शर्त है उन की
वो जिस के पास आते हैं अमानत बन के आते हैं
सितम की ख़्वाहिशें 'बेख़ुद' ग़ज़ब की आरज़ुएँ हैं
जवानी के ये दिन शायद मुसीबत बन के आते हैं
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