बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो's image
091

बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो

ShareBookmarks

बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो

मुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो

तुम को उल्फ़त नहीं मुझ से ये कहा था मैं ने

हँस के फ़रमाते हैं तुम अपनी मोहब्बत दे दो

हम ही चूके सहर-ए-वस्ल मनाना ही न था

अब है ये हुक्म कि जाने की इजाज़त दे दो

मुफ़्त लेते भी नहीं फेर के देते भी नहीं

यूँ सही ख़ैर कि दिल की हमें क़ीमत दे दो

कम नहीं पीर-ए-ख़राबात-नशीं से 'बेख़ुद'

मय-कशो तो उसे मय-ख़ाने की ख़िदमत दे दो

Read More! Learn More!

Sootradhar