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आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं

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आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं

आग लग जाएगी कहीं न कहीं

मिरे दिल से निकल के दुनिया में

चैन से हसरतें रहीं न कहीं

बे-हिजाबी निगाह-ए-उल्फ़त की

देखे वो शर्मगीं कहीं न कहीं

आ गए लब पे दिल-नशीं नाले

जा ही पहुँचेंगे अब कहीं न कहीं

हम समझते हैं हज़रत-ए-'बेख़ुद'

चोट खा आए हो कहीं न कहीं

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Sootradhar