बादलों's image
0676

बादलों

ShareBookmarks

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।

मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में,
चू पड़ूँगी या कमल के फूल में।
बह गई उस काल एक ऐसी हवा
वो समन्दर ओर आई अनमनी,
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वो उसी में जा गिरी मोती बनी।

लोग यों ही हैं झिझकते सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर,
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।

Read More! Learn More!

Sootradhar