जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई's image
0271

जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई

ShareBookmarks

जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई

उन की निगाह और भी मासूम हो गई

हालात ने किसी से जुदा कर दिया मुझे

अब ज़िंदगी से ज़िंदगी महरूम हो गई

क़ल्ब ओ ज़मीर बे-हिस ओ बे-जान हो गए

दुनिया ख़ुलूस ओ दर्द से महरूम हो गई

उन की नज़र के कोई इशारे न पा सका

मेरे जुनूँ की चारों तरफ़ धूम हो गई

कुछ इस तरह से वक़्त ने लीं करवटें 'असद'

हँसती हुई निगाह भी मग़्मूम हो गई

Read More! Learn More!

Sootradhar