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धार

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कौन बचा है जिसके आगे

इन हाथों को नहीं पसारा

यह अनाज जो बदल रक्त में

टहल रहा है तन के कोने-कोने

यह क़मीज़ जो ढाल बनी है

बारिश सर्दी लू में

सब उधार का, माँगा-चाहा

नमक-तेल, हींग-हल्दी तक

सब क़र्ज़े का

यह शरीर भी उनका बंधक

अपना क्या है इस जीवन में

सब तो लिया उधार

सारा लोहा उन लोगों का

अपनी केवल धार।

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Sootradhar