मैं हर बे-जान हर्फ़-ओ-लफ़्ज़ को गोया बनाता हूँ
कि अपने फ़न से पत्थर को भी आईना बनाता हूँ
न जाने क्यूँ अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है
मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूँ
पराया कौन है और कौन अपना सब भुला देंगे
मता-ए-ज़िंदगानी एक दिन हम भी लुटा देंगे
तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे
अता हुई है मुझे दिन के साथ शब भी मगर
चराग़ शब में जिला देता है हुनर मेरा
सभी के अपने मसाइल सभी की अपनी अना
पुकारूँ किस को जो दे साथ उम्र भर मेरा
शादाब-ओ-शगुफ़्ता कोई गुलशन न मिलेगा
दिल ख़ुश्क रहा तो कहीं सावन न मिलेगा
तुम प्यार की सौग़ात लिए घर से तो निकलो
रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा
तू मेरे पास था या तेरी पुरानी यादें
कोई इक शेर भी तन्हा नहीं लिखा मैंने
मेरा हर शेर हक़ीक़त की है ज़िंदा तस्वीर
अपने अशआर में क़िस्सा नहीं लिखा मैंने