
ख़ुलूस प्यार वफ़ा और बे-रुख़ी का लिबास
बदलता रहता है ये वक़्त आदमी का लिबास
छुपे हैं सारे सितारे है तीरगी का लिबास
मिला न शब को कभी रोज़ चाँदनी का लिबास
बहुत ही क़ीमती है पैरहन चराग़ों का
जला के ख़ुद को मिला उन को रौशनी का लिबास
लिबास-ए-ग़म भी मसर्रत से तू पहन ले बशर
तमाम उम्र किसे मिल सका ख़ुशी का लिबास
बड़े क़रीने से सब ग़म हुए हैं पोशीदा
मिला है जब से मिरे दिल को शायरी का लिबास
उसी को चैन मयस्सर यहाँ है जिस ने भी
उतार फेंका हो एहसास-ए-कमतरी का लिबास
है आरज़ू कि हो अब मग़्फ़िरत नसीब मुझे
पुराना हो गया है मेरी ज़िंदगी का लिबास
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