
मर जाओ मर जाओ मर जाओ
अब तो मर जाओ चेतना पारीक
तुमको नींद से भरी ठंडी सर्द रातों की क़सम का वास्ता,
तुमको पुरानी गलियों की बंद लंबी
खिड़कियों का वास्ता।
मैं कब तक आऊँगा कलकत्ता और
बिना मिले लौट जाऊँगा,
मैं कब तक तुम्हारे बेतकल्लुफ़ दिल से
आस लगाए बैठा रहूँगा।
पोखरों में मछलियाँ अभी भी तुम्हारा इंतज़ार करती हैं।
नई तितलियाँ कितनी आसानी से अब भी तुम्हारा
ऐतबार करती हैं।
मर गए कितने कवि तुम्हारे प्यार के
चक्कर में चेतना पारीक–
तुम उनसे कविता में पूरी न हुईं।
कितने पागल हो गए, कितने प्रेमी
कितने ख़ुदा
तुमने किसी को
आदमी नहीं छोड़ा।
मैं तुमसे प्रेम चाहता था चेतना पारीक
तुम मुझसे कविताएँ चाहती थीं।
हम कितने अधूरे रहे
अपने अधूरेपन में मर जाओ,
अपनी मोहब्बत में मर जाओ,
किसी कविता में मर जाओ चेतना पारीक,
मेरी याद में मर जाओ।
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