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मग़्लूब ए'तिमाद - नज़्म

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और

हवाएँ

सकते के आलम में

खड़ी हैं

सम्तें

बे-ज़बान सी

इक एक को

देख रही हैं

बुलंदी पर उड़ता

ए'तिमाद का तय्यारा

ज़रूरतों के

पहाड़ से टकराता

तवाज़ुन खो बैठा

और बिखर गया

फिर

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Sootradhar