पहली पेंशन's image
0230

पहली पेंशन

ShareBookmarks


श्रीमती कार्लेकर
अपनी पहली पेंशन लेकर
जब घर लौटीं–
सारी निलम्बित इच्छाएँ
अपना दावा पेश करने लगीं।

जहाँ जो भी टोकरी उठाई
उसके नीचे छोटी चुहियों-सी
दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ!

श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं
क्या-क्या ख़रीदें, किससे कैसे निबटें !
सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाई
झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर
चूहेदानी में इच्छाएँ फँसाईं
(हुलर-मुलर सारी इच्छाएँ)
और कहा कार्लेकर साहब से–
“चलो ज़रा, गंगा नहा आएँ!”

 

Read More! Learn More!

Sootradhar