अटट ठण्ड है, बाबा !
बतखों के रोओं पर कीचड़ सिहरती है !
नए साल का पहला अख़बार एक था
साइकिल के कैरियर पर समेटे हुए,
कोहरे की गाँती कसके लपेटे हुए
बेमन से निकला है सूरज !
चलो, गनीमत है कि निकला तो ।
राहतें आती हैं ज़िन्दगी में ऐसे ही
थके हुए क़दमों से चलकर
जैसे कि दंगे में मरे हुए लोगों के घर आता है
सरकारी मुआवजा
अपनी बगलें झांकता,
नाकाफ़ियत पर शर्मिन्दा
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