आधा अंधेरा है, आधा उजाला है's image
0470

आधा अंधेरा है, आधा उजाला है

ShareBookmarks


एक लोरी गीत: गर्भस्थ शिशु के लिए

आधा अंधेरा है, आधा उजाला है
इस प्रसन्न बेला में
रह-रहकर उठती है
एक हरी मितली-सी,
रक्त के समंदर से लाना है अमृतकलश!
मेरी इन सांसों से
कांप-कांप उठते हैं जंगल,
दो-दो दिल धड़क रहे हैं मुझमें
चार-चार होंठों से पी रही हूं मैं समंदर!
चूस रही हूं एक मीठी बसंती बयार
चार-चार होंठों से!
चार-चार आंखों से कर रही हूं आंखें चार मैं
महाकाल से!
थरथरा उठे हैं मेरे आवेग से सब परबत
ठेल दिया है अपने पैरों से
एक तरफ मैंने उन्हें!
यह प्रसव-बेला है, सोना मत,
इंद्रधनुष के सात रंगों से
है यह बिछौना सौना-मौना।
जनम रहा है जैसे मेरे पातालों से
एक नया आसमान!
अभी सोना मत!
बस, बेटी बस, थोड़ी देर सबर!
फिर मैं निंदिया के महाजल में
डुबकियां लगा दूंगी तुझको खुद,
दुधुवा पिलाके सुला दूंगी तुझको खुद!
जनमतुआ चानी पर छपकूंगी
अंजुरी-भर तेल!
गुजुर-गुजुर आंखों में आंजूंगी
दुनिया के सारे अंधेरे!
लोरी गाएंगी दिशाएं तब-
‘आरे आव, पारे आव
नदिया किनारे आव,
सोने के कटोरिया में
दूध-भात ले ले आव।
बबुआ के मुंहवा में घुटूक!’

Read More! Learn More!

Sootradhar