तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर's image
015

तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर

ShareBookmarks

पलकें झपकती आँखों के समक्ष

भौंहों के बीच

शून्य सिकुड़ता है तो क्या!—

अंत को पाए हुए मर्त्य की घनीभूत चेष्टाएँ

उसके अपलक होने में आहत हैं?

तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर

मैंने जो स्थैर्य साध लिया है,

क्या तुम उसे विचलन की सीमा कहकर चले जाओगे?

पानी के पुल बाँधकर

उफनती नदी से पार पाओगे तुम!—

[कि, अपनी तहों में डूबी नदी वह

तुम्हें बहा ले जाने को उफनती है।]

Read More! Learn More!

Sootradhar