धूम थी अपनी पारसाई की's image
0146

धूम थी अपनी पारसाई की

ShareBookmarks

धूम थी अपनी पारसाई की

की भी और किस से आश्नाई की

क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत

हम को ताक़त नहीं जुदाई की

मुँह कहाँ तक छुपाओगे हम से

तुम को आदत है ख़ुद-नुमाई की

लाग में हैं लगाओ की बातें

सुल्ह में छेड़ है लड़ाई की

मिलते ग़ैरों से हो मिलो लेकिन

हम से बातें करो सफ़ाई की

दिल रहा पा-ए-बंद-ए-उल्फ़त-ए-दाम

थी अबस आरज़ू रिहाई की

दिल भी पहलू में हो तो याँ किस से

रखिए उम्मीद दिलरुबाई की

शहर ओ दरिया से बाग़ ओ सहरा से

बू नहीं आती आश्नाई की

न मिला कोई ग़ारत-ए-ईमाँ

रह गई शर्म पारसाई की

बख़्त-ए-हम-दास्तानी-ए-शैदा

तू ने आख़िर को ना-रसाई की

सोहबत-ए-गाह-गाही-ए-रश्की

तू ने भी हम से बेवफ़ाई की

मौत की तरह जिस से डरते थे

साअ'त आ पहुँची उस जुदाई की

ज़िंदा फिरने की है हवस 'हाली'

इंतिहा है ये बे-हयाई की

 

Read More! Learn More!

Sootradhar