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मेरी दुनिया के तमाम बच्चे

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वो जमा होंगे एक दिन और खेलेंगे एक साथ मिलकर

वो साफ़-सुथरी दीवारों पर

पेंसिल की नोक रगड़ेंगे

वो कुत्तों से बतियाएँगे

और बकरियों से

और हरे टिड्डों से

और चीटियों से भी...

वो दौड़ेंगे बेतहाशा

हवा और धूप की मुसलसल निगरानी में

और धरती धीरे-धीरे

और फैलती चली जाएगी

उनके पैरों के पास...

देखना!

वो तुम्हारी टैंकों में बालू भर देंगे एक दिन

और तुम्हारी बंदूक़ों को

मिट्टी में गहरा दबा देंगे

वो सड़कों पर गड्ढे खोदेंगे और पानी भर देंगे

और पानियों में छपा-छप लोटेंगे...

वो प्यार करेंगे एक दिन उन सबसे

जिनसे तुमने उन्हें नफ़रत करना सिखाया है

वो तुम्हारी दीवारों में

छेद कर देंगे एक दिन

और आर-पार देखने की कोशिश करेंगे

वो सहसा चीख़ेंगे!

और कहेंगे :

“देखो! उस पार भी मौसम तो हमारे यहाँ जैसा ही है”

वो हवा और धूप को अपने गालों के गिर्द

महसूस करना चाहेंगे

और तुम उस दिन उन्हें नहीं रोक पाओगे!

एक दिन तुम्हारे महफ़ूज़ घरों से बच्चे बाहर निकल आएँगे

और पेड़ों पे घोंसले बनाएँगे

उन्हें गिलहरियाँ काफ़ी पसंद हैं

वो उनके साथ ही बड़ा होना चाहेंगे...

तुम देखोगे जब वो हर चीज़ उलट-पुलट देंगे

उसे और सुंदर बनाने के लिए...

एक दिन मेरी दुनिया के तमाम बच्चे

चींटियों, कीटों

नदियों, पहाड़ों, समुद्रों

और तमाम वनस्पतियों के साथ मिलकर धावा बोलेंगे

और तुम्हारी बनाई हर एक चीज़ को

खिलौना बना देंगे...

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Sootradhar