
सूरज की हर किरण तेरी सूरत पे वार दूँ
दोज़ख़ को चाहता हूँ कि जन्नत पे वार दूँ
इतनी सी है तसल्ली कि होगा मुक़ाबला
दिल क्या है जाँ भी अपनी क़यामत पे वार दूँ
इक ख़्वाब था जो देख लिया नीन्द में कभी
इक नीन्द है जो तेरी मुहब्बत पे वार दूँ
'अदम' हसीन नीन्द मिलेगी कहाँ मुझे
फिर क्यूँ न ज़िन्दगानी को तुर्बत पे वार दूँ
Read More! Learn More!