
इक नींद के जवाब में रक्खे हुए हैं हम,
यानी किसी के ख़्वाब में रक्खे हुए हैं हम.
सीने पे रख के सोती है जिसको वो रात भर,
अपनी उसी किताब में रक्खे हुए हैं हम.
ख़ामोश है वो इसलिए दिल के सवाल पर,
मालूम है, जवाब में रक्खे हुए हैं हम.
आँखों से उसकी क्यों न उजाला हो हर तरफ़ ?
पलकों के पीछे ख़्वाब में रक्खे हुए हैं हम.
कब से किसी के लम्स-ए-नज़र की उमीद में,
चुपचाप से किताब में रक्खे हुए हैं हम.
पूजन वो माहताब का करती है इस तरह,
जैसे कि माहताब में रक्खे हुए हैं हम.
अंदर न वो महक है, न बाहर वो ताज़गी,
सूखे हुए गुलाब में रक्खे हुए हैं हम.
तारी दिलो-दिमाग़ पे दुनिया का है सुरूर
गोया किसी शराब में रक्खे हुए हैं हम.
ऐसा भी कोई गुज़रे जो अच्छा कहे हमें,
इक जादा-ए-ख़राब में रक्खे हुए हैं हम.
इस ज़िंदगी के तल्ख़ सवालों से बेख़बर,
मासूम से जवाब में रक्खे हुए हैं हम !