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है ज़माना किस क़दर मेरे ख़िलाफ़

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है ज़माना किस क़दर मेरे ख़िलाफ़,
और उस पर मैं इधर, मेरे ख़िलाफ़.

हर क़दम, हर रहगुज़र मेरे ख़िलाफ़,
यानी मेरा ही सफ़र मेरे ख़िलाफ़.

क्यों न उट्ठे हर नज़र मेरे ख़िलाफ़,
हो नज़र उसकी अगर मेरे ख़िलाफ़.

फिर दिखाया इक नया रस्ता उसे,
हो गया फिर राहबर मेरे ख़िलाफ़.

पहले उसने धूप वाली राह दी,
कर दिए फिर सब शजर मेरे ख़िलाफ़.

मंज़िलों को सिर्फ़ मेरा इंतज़ार,
और हर इक रहगुज़र मेरे ख़िलाफ़.

इक नया रस्ता चुना मैंने कि बस !
हो गया सारा सफ़र मेरे ख़िलाफ़.

हर ख़बर से बेख़बर हूँ आजकल,
उड़ रही है ये ख़बर मेरे ख़िलाफ़.

मैं भी मैं हूँ ! कौन सा मर जाऊँगा ?
होने दो सब हैं अगर मेरे ख़िलाफ़.

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Sootradhar