यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ's image
042

यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ

ShareBookmarks

यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ

अपनी बस्ती से दूर कर तन्हा हूँ

कोई नहीं है मेरे जैसा चारों ओर

अपने गिर्द इक भीड़ सजा कर तन्हा हूँ

जितने लोग हैं उतनी ही आवाज़ें हैं

लहजों का तूफ़ान उठा कर तन्हा हूँ

रौशनियों के आदी कैसे जानेंगे

आँखों में दो दीप जला कर तन्हा हूँ

जिस मंज़र से गुज़री थी मैं उस के साथ

आज उसी मंज़र में कर तन्हा हूँ

पानी की लहरों पर बहती आँखों में

कितने भूले ख़्वाब जगा कर तन्हा हूँ

मेरा प्यारा साथी कब ये जानेगा

दरिया की आग़ोश तक कर तन्हा हूँ

अपना आप भी खो देने की ख़्वाहिश में

उस का भी इक नाम भुला कर तन्हा हूँ

Read More! Learn More!

Sootradhar