क़लम पूछती है मुझसे—
तुझे विदित है ओ लेखक! उनका वर्णन तू न कर पाएगा।
तालाब नहीं वो सागर है, क्या थोड़े जल से भर जायेगा?
कर प्रयत्न जितना भी मगर हर शब्द सूक्ष्म पड़ जायेगा।
मैं भी हो जाऊँगा अस्तित्वहीन पर मन न तेरा भर पायेगा।
मैं कहता क़लम से—
मुझे विदित है, सहज नहीं उनकी महिमा का वर्णन कर पाना।
मुझे विदित है, सहज नहीं उनके त्याग का वर्णन कर पाना।
प्रयास करूँगा इस कविता में महानतम शब्द
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