आधुनिकता के गलियारों में
तरक़्क़ी की सीढ़ी के नीचे
बदहवास बैठी हिन्दी माँ
आँखों से छलकता दर्द
चेहरे से विस्मय, अवसाद
तरक़्क़ी की सीढ़ियों पर चढ़ते
उसके बेटे
उसे साथ ले जाना भूल गये हैं।
एकांत बैठी हिंदी माँ सिसकती
अपनी दशा पर हँस
क़िस्मत को कोस रही है
वक़्त की बिसात पर
मोहरा बनी हिन्दी माँ।
हिन्दी माँ जिसने हमें बोली दी
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