सुबह-सुबह पूजा के लिए फूल तोड़ना उसका रोज़ का नियम था। आज भी वह नहा कर आई तो देखा कनेर हुलस रहा है, पीले फूलों संग, मगर, वह भीतर गई और प्रणाम करके भगवान के ऊपर से कल के बासी फूल उतार लाई। उन्हें एक बड़े से झाड़ की जड़ों में मसल कर डाल दिया। साथ ही तांबे के छोटे कलश का पानी भी उड़ेल दिया। बासीपन का विसर्जन, रोज़ ही तो करती है पर क्या कभी हो पाया? यथार्थ में बासीपन का विसर्जन कितना कठिन है। बीत चुकी घटनाएँ स्मृतियों के घोंसले से अपनी मुंडी निकाल बाहर झाँकती रहतीं हैं। इतना ही नहीं वे प्रायः हर नवीन निर्णय में पूर्वाग्रह बन कर गुथमगुत्था रहतीं हैं।
सीमा ने भरपूर कोशिश की थी इस घर में कभी किसी को अपनी पिछली ज़िंदगी के कंकड़ काँटे नज़र नहीं आने देगी। आख़िर इस घर के लोगों का इसमें क्या दोष? इन साधु समान लोगों ने उसे बिना झिझक अपनाया। सीमा ने भी अपनी पिछली ज़िंदगी के पन्ने दीपक के सामने खोल कर रखने में कोई कोताही नहीं बरती थी। आज दोनों के विवाह को एक बरस हो गया था। दीपक ने भी संक्षेप में सारी जानकारी घर वालों को दे दी थी।
सुबह स्नान के बाद पूजा की तैयारी का ज़िम्मा सीमा ने तभी से अपने ऊपर ले लिया था जबसे वह ससुराल आई थी। घर में सास नहीं, दादी सास थीं जो यदाकदा नियम धर्म की शिक्षा भी दिया करतीं थी। उनका यह शिक्षण-प्रशिक्षण पूजा तक ही सीमित नहीं था अपितु रसोई से होते हुए शयनकक्ष तक पहुँच जाया करता था। एक दिन उन्हींने बताया था, "जिन पौधों से तोड़ने पर दूध निकलता है उनके फूल ठाकुर जी को नहीं चढ़ाते।" और यह भी, "पीले फूल विष्णु जी को अधिक प्रिय हैं।"
इसके आगे सीमा ने कभी नहीं पूछा कि दादी पूजा के लिए कनेर के फूल क्यों तुड़वातीं हैं। उसका मन दुविधा में ही रहता कि फूल पीले हैं इसलिए चढ़ाए जाते हैं लेकिन तोड़ने पर दूध निकलता है तो फिर क्यों चढ़ाए जाते हैं! पूछने पर दादी न जाने क्या सोचेंगी? दीपक को यह घटना किस तरह बताएँगीं? सबसे भली चुप। दिन बीतते गए और सीमा ने पूजा के फूल चुनने के साथ-साथ घर के अन्य काम भी अपने ही ऊपर ले लिए।
आज करवाचौथ का व्रत रखा था उसने। सारा दिन रसोई में बीता। मोहल्ले की कुछ महिलाएँ उसे पति के साथ अपने घर आकर पूजा करने का न्यौता दे गईं। जब वह पूजा करके आई सभी ने भोजन किया और अपने-अपने कमरे में चले गए। मगर सीमा छत पर रखे बड़े से सिंटेक्स की ओट में बैठी न जाने कहाँ खोई थी। आहट हुई तो उसने देखा दादी हैं। दादी ने शरारती बच्चे की तरह अपने हाथ में लाए छोटे से पेंडल को खोल कर उसके सामने अपनी बूढ़ी हथेलियाँ फैला दीं। इसमें सीमा और प्रकाश की विवाह के समय की फ़ोटो थी। इसे देखते ही सीमा दादी के गले लग गई। सीमा विवाह के कुछ माह बाद ही विधवा हो गई थी। उसके सहकर्मी दीपक से यह उसका दूसरा विवाह था।
अगली सुबह, दादी ने पूजा में कनेर का पुष्प उठाया तो सीमा कुछ कहना चाहती थी। फूल के डंठल पर वह सफेद बूँदें देख रही थी। दादी ताड़ गईं, बोलीं ये ज़हर नहीं बेटी ये तो फूल के आँसू हैं। प्रभु के चरणों में चढ़ कर ख़ुश तो होता है फिर भी अपनी हरी डाली से विछोह को भुला नहीं पाता। सीमा ने महसूस किया कि वह भी तो ऐसी ही है। स्मृतियों में उसका अतीत आ कर उसे रुला जाता है। चाहे जितनी बासी हो जाएँ, स्मृतियों का विसर्जन नहीं हो पाता।
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