
नवरस कविता
मैंने उसे "श्रृंगार रस" से देखा!
उसने मुझ पर "करुण रस" का जाल फैंका!
जीवन में सब कुछ "अद्भुत रस" से सराबोर हुआ!
फिर अचानक उसने "भयानक रस" की वर्षा की!
तत्पश्चात मेरे मूल स्वभाव "रौद्र रस" का प्रारम्भ हुआ!
इस सबके बीच दुनिया
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