![जानता हूँ's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40yogendra-singh/None/1638162669437_29-11-2021_10-41-11-AM.png)
गिरकर उठा हूँ,अब उठकर चलना जानता हूँ,
पर्वत सी उद्विग्नता से निकलना जानता हूं ।
मैं नहीं दरख़्त वो, जो विमुख हवा के झोंके से
कैसे सम्हलना है आंधियों से,हरवक्त जानता हूँ ।
निशदिन फैला रहा चंदन सी महक चहुँओर,
बाँस के कारण उठी दावानल जानता हूँ ।
चल पड़ा हूँ राहगीर बनकर पूण्य की राह पर
पाप के कारण घरों के मैं हश्र जानता हूँ ।
जिनमें नह
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