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इश्क़ कहते हैं


ये सहमी हुई रातें
जहाँ जरा-सी आवाज शोर लगती है
मैं तरसता हूँ तेरी मीठी आवाज को,
ये हवायें मुझे छू-कर
तुम्हारा अहसास कराती है।
कुछ अक्लमंद लोग इसे पागलपन कहते हैं और
कुछ पागल इसे इश्क़ कहते हैं

तुम्हारी आँखे रश्क करती है
मैं होश में बहकता हूँ
बेख्याली में सम्भलता हूँ
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