
ये यास्मीन की कहानी हैं, हम रोज़ कुछ कहानियां सुनते हैं , जीते हैं या खुद किसी बड़ी कहानी का एक हिस्सा समझ कुछ किरदार अदा कर नए कल की उम्मीद में चुपचाप खामोशी से जीवन बसर कर जाते हैं।
यास्मीन के साथ जीवन में कुछ ऐसे हादसे हुए थे जिनसे मिला अनुभव उसे अंदर से तोड़ रहा था, उसे पढ़ने का बहुत शौक था, वो खुदको बहुत संरक्षित पाती जब भी अपने मन को एकाग्र कर कुछ पढ़ती थी। समाज का अभिन्न अंग बन चुके "सोशल मीडिया" से दूरी उसे अच्छी लगती थी, लोग उसके बारे में कुछ कम जानते थे, जो जानते थे उन्हें वो बहुत मज़बूत प्रतीत होती थी।
इस कहानी के अहम किरदार से भी मिलिए! इनका नाम हैं - विप्लव , जो की बड़े मज़े से अपने औहदे से मन चाही चीज़ें पा जाते हैं, औहदा विरासत में नहीं प्राप्त हुआ था इसी बात का घमंड विप्लव में कुछ इतना था कि प्रभावशाली लगते लोग ही उसे आकर्षित करते थे, मामूली लोगों की उसकी समझ कुछ ऐसी थी कि उसकी सूची में कम जाने माने लोग मामूली थे जिन्हें ना वो सम्मान देता था और नाही उनकी प्रगति के लिए कोई पहल करता था, बात तो तब हद से पार हुई जब उसने उन मामूली लोगों की बढ़त और ख्याति से ईर्ष्या रखना शुरू किया। ईर्ष्या व्यक्ति को कुरूप बनाती हैं , कुछ ही वर्षों में ईर्ष्या रखने वाला व्यक्ति किसी आलीशान इमारत के समान भले आकर्षण का केंद्र कुछ वक्त बना रहे किंतु कमज़ोर ढांचे की वजह से कुछ ही वर्षों में ढह जाता हैं।
हम सबकी भी कुछ कमज़ोरियां होती हैं ना कुछ हल्की फुल्की तो कुछ थोड़ी ज़िद्दी, इसलिए हम कुछ हकीकतें अपनी शर्तों के अनुसार चाहते हैं ताकि अपनी काबिलियत के अनुसार हकीकत को ढाल लें , और कमज़ोरियां कभी सामने ही ना आए।
यूं तो "कॉरपोरेट कल्चर" भी कुछ ऐसा