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गृहस्थी भी तुम संपूर्ण संभाले,

ज़िम्मेदारियां अनेक तुम्हारे हवाले!

ढ़ालती खुदको स्थिति के अनुरूप,

रौनक लाता तुम्हारा तेजस्वी स्वरूप!

सबमें झलकती तुम्हारे प्रेम की तरंग,

जैसे पवन संग उड़ती आशा में लिपटी पतंग!

बागवानी से सुसज्जित सुंदर बगीचा,

निहारता नन्हा चेहरा जो खड़ा समीप दरीचा,

पोषण देती तुम्हारी करुणा की अदृश्य खुराक़,

ममता ऐसी जैसे देह से रूह झ़ांकती नज़रें पाक!

देवी रमा की लगती तुम परछाई,

विद्या से तुम मां सरस्वती कहलाई!

मां पार्वती सा तुम्हारा विनम्र भेष,

वात्सल्य तथा विवेक का प्रचुर समावेश!

समस्त वेदों की जननी जैसे मां गायत्री,

उसी प्रकार शिशु को जगत में लाती सशक्त स्त्री,

मां दुर्गा सा उसकी शक्ति का होता प्रवाह!

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