
तुम्हारा विशिष्ट शौर्य,
तथा नैसर्गिक सौंदर्य,
वो जो तुम्हारे कार्यों द्वारा व्यक्त,
जो तुम्हें बनाए भीतर से सशक्त,
उसको तुम वक्त देकर निखारों!
स्वप्न को निष्ठा रखकर संवारों,
निंदा में भले हो लोग माहिर,
बाहरी आकर्षण चाहे जगजाहिर!
चाहे तल्ख़ हो समाज का रवैया,
शोहरत हासिल जब मनोरंजन मुहैया!
किंतु सौंदर्य नहीं शरीर तक सीमित,
मानसिकता का इसे स्वीकारना गनीमत,
जुल्फें ही नहीं केवल तुम्हारी पहचान!
नैन नक्श ही नहीं बढ़ाते हमेशा मान,
तुम्हारे भीतर समाई जागृति व जीवन,
उम्र हो चाहे कमसिन या हो ढ़लता यौवन,
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