मेहुल!'s image

मन खिल उठता होकर के बेकाबू,

मिट्टी में घुलती जब ये भीनी खुशबू!

बूंदें धरा पर आहिस्ता से जाती जैसे मिल,

सभी समस्याएं भी समक्ष से हो रही धूमिल,

चिंताओं की पोटली बना चुके अगर कुल!

बेफिक्र होकर बहने दो उन्हें कह रही मेहुल!

कभी मौसम बिना बताएं ज़रा यूंही बदलता,

ताज़ुब होता देख उसके प्रभाव की प्रबलता!

असीम जो हर दिन मेरा शहर मुझे सिखलाता,

अभ्र से झांकता सूर्य

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