आपकी मीठी सी बोली को,
आंचल सी पाक चोली को,
आपके द्वारा बनाई रंगोली को,
रात को आपसे सुनी लोरी को,
प्रेम की जीती जागती मूरत को,
चांदनी बिखेरती चांद सी सूरत को!
करीने से साड़ी की प्लेटे खोंसने को,
घी में चुपड़ी गर्म रोटी परोसने को!
प्यार भरे लहजे से सदा टोकने को,
गाड़ी अकेले चलाने पर रोकने को!
दुरुस्त देखभाल की गनीमत को,
आपके संग जी हुई हकीकत को!
आंखों से आपत्ति जताने को,
निराले ढंग से विश्वास बढ़ाने को!
अत्यंत चाव से व्यंजनों को खाने को,
अपनी प्याली से मुझे भी पिलाने को,
हर मनपसंद उपहार मुझे दिलाने को,
मेरी हर कथा को रुचि से सुनने को!
मेरे साथ मेरा भविष्य बुनने को,
मेरा वर्तमान स्थिरता से चुनने को,
मेरे संग गीतों को गुनगुनाने को,
सुबह गुनगुनी धूप संग सेंकने को!
रूप में आपकी रूह की झलक को,
तकिया रात्रि में मेरी तरफ सरकाने को!
मेरे अंतर्मन में बिना प्रतिशोध झांकने को,
संस्कृत शिक्षा के सुव्यवस्थित शोध को,
आपके जल्द ही लुप्त होने वाले क्रोध को,
गहन से आपके प्रखर प्रबोध को!
शिखर पर पहुंचे आपके चित्त को,
संभाले नित हितकारी कार्यभार को,
आपके साहस में सहसा हुए निखार को,
अर्धांगिनी होने के आपके श्रृंगार को,
आपके रक्त की बहती धार को,
सहज आपसे हुए हर संवाद को,
मुझमें मौजूद आपके अंतर्नाद को,
सबकुछ करीने से सजा हुआ मेरी यादों में!
लगता कल ही तो थीं आप मेरी बाहों में!