
बहुत भारी हैं इसका वार!
एकांत में बनती ये पतवार,
पूजती उसे जो हैं निर्विकार,
शब्दों को प्रदान करती आकार,
इससे जन्में फौलाद के कई प्रकार,
ये तो करती कुरीतियों पर भी प्रहार!
उत्पन्न कराती स्वयं नए व्यापक विचार!
जो लिखोगे वो हो चलेगा सदाबहार,
प्रश्न करो उस पर जो छपे खुले अखबार,
क्यूं हो रहे सुरक्षित समाज में भी बलात्कार!
नारी के सम्मान को किस लिए जा रहा नकार?
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