
खुला आमंत्रित करता मंच,
ना किसी राजनीति का कोई प्रपंच!
भई! यहां की बैठक में सभी हैं सरपंच,
वक्त गुज़रता यहीं "डिनर" होता या "लंच!"
ऐसा हैं अपना अनन्य कविशाला,
सीखते - सिखाते रहने की संपूर्ण पाठशाला!
पढ़िए चाहे चुस्की लेते हुए चाय का प्याला,
यहां फूटने दीजिए लेखन की अपनी ज्वाला!
प्रज्वलित रहती यहां जुनून की आग!
रंगीन फूलों से खिला हुआ मानो कोई बाग,
सभी बत्तीस समाहित हो संगीत में जैसे राग,
वैसे ही निर्मलता से कवि मन को मिलता यहां पराग!
मंदिर,मस्जिद,गिरिजाघर हो या गुरुद्वारा!
सौंदर्य आध्यात्म का हर स्थल पर गहरा,
हर उत्कृष्ट काव्य पर ओज यहां पर भी लहरा!
हर मुखड़े व अंतरे से उभ
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