उदय और अभय।'s image

शुष्क शीत में मखमल सा एहसास,

अपनापन तुम्हारा बहुत अनोखा एवं खास,

उमंग लिए मंदिर में होते जैसे जब कीर्तन,

सूनी नगरी में सॅवेरे गूंजती जैसे जब अज़ान!

सुकून की चेष्ठा करता हर कोई सरेआम,

फिर मेरे लफ्ज़ों पर क्रोधित ना हो आवाम।

तुम्हें भला क्यूं सिमेट दिया जाए इतिहास के पन्नों से?

तुम वो नहीं जो बंट जाओ मज़हबी इरादों से!

तुमने कुंठा को नहीं करने दिया इंसानियत में फरेब़,

प्रेम को लुटाकर मिटाया स्वच्छंद होकर सारा ऐब,

जग को बतलाने हेतु ना गढ़ों फिर तुम कोई व्यथा!

चित्रित होने दो हौले से

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