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अर्ज़ किया हैं!

कुछ बातें ख़ामोशी में भी कह दी जाती हैं,

कुछ यादें तो ख्वाइशों के बिना भी सजीव रहती हैं।



ऐसी ही यादों , बातों और इरादों के नाम पेश हैं चंद अल्फाज़ो वाले कुछ छंद!


आशा करती हूं आपको पसंद आएं! :)

साथ ही टिप्पणी कर सुधार के बिंदु बतलाएं,

बताएं ये भी की आपको मेरे लेखन में क्या कुछ लुभाएं!


तो प्रस्तुत हैं :



सख़्ती


क्या सख़्त होने से कम होती तकलीफ?

अगर कर देते तनिक सच्ची सी तारीफ़!

तो अतीत का कोहरा धुंधला पड़ जाता,

अंदर का टूटा बिखरा सब सिमट जाता।



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सुकून



जब लब

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