अनोखा होता अगर...
इंसानियत को मद्देनज़र रखता नगर,
अभिगम्य होती शिक्षा की डगर!
किंतु हुआ नहीं ऐसा मगर!!
थोड़ी थीं सबको धर्म प्रचार की होड़,
तभी निर्मित हुए चुनौतियों के मोड़,
हसरतें सबमें की उनका समूह हो सबसे बेजोड़,
ऐसा विष रहा था मानसिकता को सिकोड़!
सहमे हुए थे अंदरूनी रूप से लोग,
ऐसा अजीब क्यों हो रहा था मानवजाति पर प्रयोग?
त्रस्त थे लोग तभी आम हो गए थे सभी मनोरोग!
क्यूं अनजान थे करने में हम अधिकारों का सदुपयोग?
रोज़गार की कमी कैसे और कब तक होगी पूरी?
म
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