![कर्म की जात क्या's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40yarlog1/None/20220731_215952_17-01-2023_01-05-57-AM.jpg)
जग की हर जाति पर मेरा कर्मसिद्ध अधिकार है
मैं मानव हूं! मानव होना यदि आपको स्वीकार है,
जगती का हर मानव मेरा अपना है रिश्तेदार है।
तेरी भी जय जयकार सखा, मेरी भी जय जयकार है।।
शब्दों की निर्मलता सीखूं, निर्मल विचार मन में बोऊं,
खुद का कूड़ा खुद ही बीनूं, खुद के बर्तन खुद ही धोऊं,
आएंगे कारवां कई अभी, इस राह चले, तापे, धापे,
रस्ते के कांटे बीन रखूं, कर्त्तव्य पूर्ण कर मैं सोऊं।
मेरे भीतर का ' शूद्र' यदि तुमको भी अंगीकार है,
तेरी भी जय जयकार सखा मेरी भी जय जयकार है।।
विद्यामंदिर में जाकर जब जीवन का सार बताता हूं,
मन की दुविधा में, मंदिर में, मानस जब भी दोहराता हूं,
जीवजगत का ब्रह्म से नाता, माया मध्य न आए तो,
जीव जीव में ब्रह्म निरख, खुद ' ब्रह्म' ही बनता जाता हूं।
मेरे मनुवादी
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