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नज़्म- मोहब्बत क्या है 

मोहब्बत क्या है शायद बदन को पाने का कोई बहाना है 
मोहब्बत शायरों के झूठे क़िस्सों का ठिकाना है 

मोहब्बत में बदन पाना ज़रूरी भी नहीं होता 
मोहब्बत तो बदन की हद से परे है और हवस की क्यारी में उगता हुआ इक फूल होती है 
इसे महबूब-ए-जाँ से कोई मतलब नहीं होता 
मोहब्बत तो ख़ुद ही महबूब होती है 
मोहब्बत तो फ़क़त एहसास-ए-क़ुर्ब होती है 
ये वो आग है जो तन्हा सीनों में दबी होती है 
मोहब्बत दिल मकीनों में किसी एहसास की तरह बसी होती है 

मोहब्बत ख़्वाबों से आँखों में उतर आती है 
मोहब्बत सीनों में अजब इल्हाम लाती है 
मोहब्बत तो तसव्वुर है जो ज़ेहनों पे गुमाँ लाती है 
मोहब्बत लफ़्ज़ बन के ग़ज़लों में उभर जाती है 

मोहब्बत ख़ूँ कब माँगती है 
मोहब्बत तो सुकूँ चाहती है 
मोहब्बत जुनूँ भी नहीं है कोई 
मोहब्बत अंदाज़-ए-फ़ुसूँ चाहती है 

मोहब्बत आग है 
मोहब्बत राग है 
मोहब्बत अँधेरा जंगल है 
मोहब्बत सहराओं का संदल है 
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