ghazal's image
जब मुझे याद कर रही होगी
आँख शबनम से भर रही होगी

वक़्त बा वक़्त अपने ही अन्दर
साँस दर साँस मर रही होगी

वो थी मूरत हाँ रेत की मूरत
धीरे धीरे बिखर रही होगी

नाज़ुकी से वजूद की अपने
कँपकँपाती सिहर रही होगी

सर से आँचल ढलक गया होगा
शाम छत प
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