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जब मुझे याद कर रही होगी

आँख शबनम से भर रही होगी


वक़्त बा वक़्त अपने ही अन्दर

साँस दर साँस मर रही होगी


वो थी मूरत हाँ रेत की मूरत

धीरे धीरे बिखर रही होगी


नाज़ुकी से वजूद की अपने

कँपकँपाती सिहर रही होगी


सर से आँचल ढलक गया होगा

शाम छत पर उ

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