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"वजूद" - विवेक मिश्र

अल्फाजों से बयाँ न कर इश्क़ खामोशी से जताया जाय,
जज्बातों को दें जिन्दगीं तो फिर न बाज़ार सजाया जाय,

ख्वाब पड़े हैं अधूरे अपने वालिदों के वतन की माटी में,
पैदा कर वहीं रोटी अब फर्ज ए वतनपरस्ती निभाया जाय,

ढूंढेंगे ले चिराग तो मिल न सकेगा कभी भी अंधेरा हँस के,
है उसका भी कुछ वजूद कभी तो पलकें झपकाया जाय,
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