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प्रेम - विवेक मिश्र

प्रेम नहीं है कोई पोथी, प्रेम साधना का अहसास है,

कुपढ़ों व अपढ़ों से ऊपर पढ़े लिखों का विश्वास है,


प्रेम नहीं है बाते थोथी, प्रेम दानवत्व का विनाश है,

रब की चौकीदारी में सबके साथ सबका विकास है,


प्रेम नहीं दो वक्त की रोटी, प्रेम सृष्टि की ही श्वांस है,

प्रेम नहीं कोई नियत खो

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