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प्रश्न उद्विग्न मन के - विवेक मिश्र

मन से अपने उद्विग्न हूँ, तुम्हारी व्यवस्था से खिन्न हूँ,

निश्चय ही तुम हो परमात्मा, मैं कंहाँ तुमसे अभिन्न हूँ ?


तुम्हारा प्रेम है रासलीला, तुम कहाओ छैल छबीला,

मैं भी तो हूँ कुछ हठीला, मेरे चरित्र से क्यूँ है गिला ?

सत्ता सब ओर जब तुम्हारी, तब मैं ही क्यूँ विपन्न हूँ ?

विभिन्नता सौंदर्य की प्रतीक, सौंदर्य से क्यूँ भिन्न हूँ ?

मन से अपने .......


तुम्हारा धर्म सत्य स्थापना का,मेरी याचना है अधर्म ?

तुम्हारा रण निशस्त्र साधना, मेरा संकल्प क्यूँ अपन्न ?

शिक्षा - दीक्षा संग ली ज

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