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"कर्म युद्धपथ" - विवेक मिश्र

विनय न मानने पर क्रुद्ध होना राम का अधिकार है,
विश्व शांति लक्ष्य पर बुद्ध का मुस्कुराना स्वीकार है,
है परमात्मा अंश आत्मा धर्मयुद्ध जिसका श्रृंगार है,
हो न चिंतित पार्थ किंचित जब संग में पालनहार है,

छोड़ मत यूँ गांडीव को सम्मुख शत्रु की ललकार है,
यहाँ न कोई रिश्ता नाता आत्मा शुद्ध व निर्विकार है,
बढ़ कर वर ले विजयमाल तू तो धर्म का पहरेदार है,
 हो न चिंतित पार्थ किंचित जब संग में पालनहार है,

काट
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