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आत्म -परिचय - विवेक मिश्र

कौन कहता है कि ज़माना हुआ,

खोटा सिक्का हूँ अब खरा नहीं हूँ

टाँग लो उम्मींदो के तुम सितारे,

आसमाँ हूँ अभी तक भरा नहीं हूँ


यकीं करना मेरा ज्यों ही उसने छुआ,

बोला ये मन युवा हूँ , ज़रा नहीं हूँ

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