
अभिलाषा है मन की
ओस की बूंद हो जाऊं।
मोती सा चमकूं,
कांच की गेंद हो जाऊं।
जैसे किरणे आती है,
टटोलती है सहलाती है,
अंतर्मन को भाती हैं,
किरणों संग लीन हो जाऊं। <
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अभिलाषा है मन की
ओस की बूंद हो जाऊं।
मोती सा चमकूं,
कांच की गेंद हो जाऊं।
जैसे किरणे आती है,
टटोलती है सहलाती है,
अंतर्मन को भाती हैं,
किरणों संग लीन हो जाऊं। <